पिता अब भी
साथ हैं मेरे।
लग रहा
ले जा रहे
मुझको कहीं
कंधे चढ़ाए
फूल-सा मैं हो रहा हूँ
वे हैं गंधों में नहाए
झर रहे आशीष झर-झर
माथ पर मेरे।
कह रहे जीना
तो बेटे
शान से जीना
गरल भी पीना पड़े
तो मान से पीना
डालते हैं फंद
अब भी
नाथ में मेरे।
देह से कब को गए
पर नेह है उनका
जेठ में भी बरसता-सा
मेह है उनका
दे रहे हैं हाथ
अब भी
हाथ में मेरे।